शनिवार, 10 नवंबर 2012

शुभ दीपावली


Diwali as per Jain Dharama: Diwali Poojan Muhurat 2012


There is a sequence to doing a puja. As per standard practise, we start with deva darshana, then circumambulate the Jina image three times while reciting the darshana patha {recitation while paying obeisance to the image of a Jina}. We bow our head in front of the image, which is seen as a symbolic representation of the supreme qualities of the Jina

We then recite the vinaya patha {Recitation of Humility}


We then recite the svasti patha {Recitation of the Names of the Auspicious Ones}


We then recite the first puja, which is the deva-shastra-guru puja {adoration of the auspicous triumvirate of god-scripture-preceptor }, the best known version of which was composed by Pandit Dyanataraya a few hundred years ago. On normal days, this puja is followed by a minimum of two otherpujas. One may do more pujas if one likes. But it is convention to carry out a minimum of three pujas. 




Mahavira puja (composed by Pt Dyanataraya) is performed on Dipavali day. The nirvana kanda {segment dealing with the liberation of the Jina} ofBhagavan Mahavira is recited by all present. At the conclusion of the nirvana kanda, a nirvana ladu {sweet offered to commemorate the liberation of the Jina} is offered with great devotion by all those present in the temple, to the Jina image. 

After finishing the puja, one offers the argha {devotional offering},  recites the shanti patha (in Sanskrit or in Hindi) and then recites the visarjana patha {formal leave taking}, which concludes the puja. 


This is the Mahavira puja as carried out in the temple. 


The same puja may be carried out at home as well. Jains normally do not have consecrated images of Jinas at home. So just place a nice framed photograph of Lord Mahavira on a table, light lamps in front of it and perform the puja as you would in a temple. 


After the puja, spend some time in solitude, reflecting upon the life and teachings of Tirthankara Mahavira. He was born a prince and yet he gave up all the trapping of luxurious life in order to become a naked ascetic wandering in the forest. He realised that eternal bliss could only be achieved by one who ceased indentifying with his body; followed the five vows of non-violence, truthfulness, non-stealing, purity of mind and body and detachment from material objects; controled the activities of his mind, speech and body; practised the five types of carefulness related to walking, eating, speaking, carrying and placing objects and disposal of bodily wastes; conquered his base passions of anger, arrogance, artifice and avarice; and attained a sense of oneness with the self. Mahavira immersed his consciousness in his self and attained supreme detachment and self-realisation. 


We must ponder upon his path and resolve to follow in his footsteps. I have found occasions like Dipavali are a great opportunity to look inwards and reflect upon my life, my conduct and whether it is capable of taking me on the path of spiritual emancipation. At all times, it is important to be honest. But especially so when we meditate upon the sublime teachings of the Jinas. It is best to carry out a self-assessment and see where we fall short of the teachings of Lord Mahavira. 


Each of us is capable of attaining liberation. The question is, do we really want it? If the answer is yes, are we willing to drop everything and focus completely on the path of self-realisation? If the answer is no, we need to think again, about what we want, whether we can actually get it, and even if we do, will it really give us the happiness we think it will?


I read somewhere, that we have endless sensual desires, but our capacity to partake of  sensual delectations is miniscule. Who are we kidding when we choose the pursuit of fleeting sensual pleasure over the attainment of lasting spiritual bliss? Only ourselves! 


The Tirthankaras are our ideals. We need to follow their teachings and live them. Unless we walk on the path of the Jinas, we cannot reach the destination that they reached - liberation. 


In devotion to the Jinas, and the Jain path of purification. 

Manish Modi

जैन धर्म में दीपावली का त्यौहार

जैनधर्म के २४ वें तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी को कार्तिक कृष्ण अमावस्या को प्रत्यूष बेला (सूर्य की पहली किरण निकलने के साथ) में निर्वाण की प्राप्ति पावापुरी (नालंदा, विहार) से हुई थी इन्द्रों में भगवान का निर्वाण कल्याणक बड़े ही धूमधाम से मनाया.

उसी दिन सायंकाल गोधूलि बेला में तीर्थंकर भगवान महावीर स्वामी  के प्रथम शिष्य गणधर श्री गौतम स्वामी को केवल ज्ञान की उत्पत्ति हुई थी. ये दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ आज से 2541 वर्ष पूर्व घटित हुई थीं, तभी से भारतवर्ष में दीपावली का त्यौहार बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है.

इस दिन जैन धर्मावलंबी प्रातःकाल में शुद्ध वस्त्र धारण कारण जिनालयों में जाते हैं और भगवान महावीर की पूजा करते हैं और 'निर्वाण कांड' पढ़कर निर्वाण कल्याणक महोत्सव मानते हुए निर्वाण लाडू समर्पित  करते हैं  और तीर्थंकरों से प्रार्थना करते हैं कि हे भगवन ! एक दिन हमको भी अपने जैसा बना लेना.

शाम को घरों को सजाया जाता है और अंधेरा होने से पहले सोलह्करण के प्रतीक १६ दिए प्रज्ज्वलित किये जाते हैं और भगवान गौतम स्वामी की पूजा व आरती की जाती है.

जैनागम के अनुसार मुनिगण जैन श्रावकों को पटाखे ना चलाने एवं गरीब और असहाय लोंगों की सेवा करने एवं उनके घरों में रौशनी/ज्ञान के दिए जलाने का उपदेश देते हैं ताकि कोई भी घर अज्ञान और मिथ्यात्व के अँधेरे में ना रहे और चहुँओर अहिंसा धर्म की ज्योति प्रकशित होती रहे.

साधुओं का उपदेश है कि इस दिन जैन श्रावक केवल और केवल देव-शास्त्र और गुरु की आराधना ही करें एवं विशेष रूप से भगवान महावीर स्वामी एवं गणधर श्री गौतम स्वामी की पूजा करें, अन्धविश्वास में पड़कर धन-दौलत, रुपये-पैसे अथवा मकान-दूकान की पूजा ना करें.

पटाखे चलाने से लाखों जीवों का घाट होता है, उन्हें कष्ट पहुँचता है, गर्भवती नारी एवं गर्भस्थ शिशु, बीमार और वृद्धजनों को अत्यन्त कष्ट और परेशानियां सहनी पड़ती हैं, छोटे-जानवरों और पक्षियों की भी मौत हो जाती है.

शुक्रवार, 31 अगस्त 2012

Vandalism of JainIdols: Mega Protest Rally by Jains in Mumbai on Sunday 2nd Sept 2012


Entire Jain Samaj of Greater Mumbai is organising a Mega Protest Bike Rally on Sunday, 2nd Septmeber 2012 to protest against vandalism of idols of Lord Adinath and Lord Mahavira in Allur (Gulbarg-Karnataka) and Lucknow (U.P.).
This Bike rally will start at 8:30 am from SVP Ground, Pancholiya College, opp. Shri Munisuvrat Swami Jain Derasar, Bhulabhai Desai Marg, Kandiwali (West), Mumbai and will march from there to Malad, Goregaon, Jogeshwari, Andheri and will end at Mahatma Gandhi Smaarak, Juhu Chaupati, Mumbai. Thereafter Prominent Jainacharayas & Jain Munis including Ganivarya Acharya Shri Labdhichandrasagarji Maharaj, Muni Shri Devprabhsagarji Maharaj, Munishri Viragsagarji Maharaj, Munishri Vinamra Sagarji Maharaj will address the gathering at 11:30 am at Juhu Chaupati.
Organizers have informed to Ahimsa Sangh that this is historical rally in various ways because it is a coordinated effort of all the four sects of Jainism i.e. Digambar, Shwetambar, Terapanthi & Sthankavasi. 10000 Jains are expected to join this rally and 5000 vehicles will Chakkajam on SV Road.
Those who wants to join this movement can bring in their Cycle, Bike, Scooter or Car etc.
Ahimsa Sangh Requests all Jain Sanghs & Jain Trusts in Mumbai to publicize this event on grand level and ensure their Mandir’s/Trust’s representation in the rally.
Pl fwd this msg via sms/email or Facebook wall and occupy social media by talking on topic #JainIdols and #JainProtests and make it top trending subject.
Regards,
Editor, Ahimsa Sangh
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शनिवार, 25 अगस्त 2012

प्रतिमा का खंडन: दिल्ली में तीव्र विरोध प्रदर्शन


प्रतिमा का खंडन: दिल्ली में तीव्र विरोध प्रदर्शन
२३ अगस्त २०१२
नईदिल्ली। आज विश्व जैन संगठन के जुझारू और धर्मपरायण अध्यक्ष श्री संजय जैन की अगुवाई में दिल्ली स्थित जंतर-मंतर पे लखनऊ में १७ अगस्त २०१२ को भगवान महावीर स्वामी की प्रतिमा तोड़े जाने के  विरोध में आयोजित विशाल धरना प्रदर्शन में हजारों की संख्या में जैन धर्मालंबियों ने उपस्थित होकर अपना तीव्र विरोध दर्ज करवाया । जंतर मंतर पर 7000 लोगों की उपस्थिति के बीच हमारी जैनशक्ति का विशाल स्वरूप देखने को मिला। इस विरोध सभा में दिगम्बर, श्वेताम्बर, तेरापंथी, स्थानकवासी जैन समाज ने एक साथ जैन एकता का परिचय दिया। इस धरने के साथ पूरे देश में लगभग 170 जगहों पर जैन समाज ने धरना दिया।
धरना प्रदर्शन के लिए सुबह से ही हजारों जैनों का हुजूम जंतर मंतर की तरफ बढ़ रहा था। लोगो के चेहरों पर उक्त घटना के प्रति आक्रोश साफ़ देखा जा सकता था। हजारो की संख्या एकत्र हुए लोगों में बच्चे, बूढ़े और महिलाएँ भी सम्मिलित थी। युवा जैन हाथों में धर्मध्वजा थामे थे और जैन धर्म की जय’ ‘भगवान महावीर की जयकार’ ‘उत्तरप्रदेश सरकार हाय हाय’ के नारे लगा रहे थे।
धरने से पहले रोहणी के सेक्टर पांच में आयोजित धर्मसभा में श्रावकों को विश्वमैत्री दिवस के अवसर पर संबोधित करते मुनि श्री पुलक सागर जि महाराज ने कहा “जो धर्म के मार्ग पर चलता है वह तोड़ने में नहीं जोड़ने पर विश्वास रखता है। हमारे अंदर किसी धर्म विशेष से द्वेष की भावना नहीं है, पर हमारे धर्मायतनों पर हमला हमें असहनीय है, हमें तो सरकार की चुप्पी कचोटती है और ऐसा लगता है कि इस घटना के पीछे कोई राजनैतिक साजिश है जो देश की एकता को अखंडता को नष्ट करना चाहते है।
उन्होंने कहा कि मैं उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से पूछना चाहता हूँ कि अगर तुम्हारे पिता का हाथ टूटा होता तो क्या तुम चुप बैठते? नहीं ना! लखनऊ में केवल पत्थर की मूर्ति नहीं अपितु हमारे पिता, हमारे जनक भगवान महावीर स्वामी जिनकी हम पूजा करते है उनकी मूर्ति को तोड़ने का दुस्साहस जालिमों ने किया है। उन्होंने कहा कि खंडित मूर्ति की जगह सरकार द्वारा दूसरी मूर्ति लगा देने की मांग नहीं करता, जैन समाज स्वयं इतना सक्षम है कि वह कई मूर्तियां स्थापित कर सकता है।
हमारी माँग है कि हमारे तीर्थो की, हमारी मूर्तियों की रक्षा होनी चाहिए। भविष्य मे इस प्रकार की घटनाएं दोबारा ना हो इस बात का आश्वासन हमें चाहिए। सरकार को कठोर कदम उठाकर दोषियों को गिरफ्तार कर दंड देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम कोई अशांति नहीं फैलाएँगे, हम कोई हिंसा करने वाले नहीं, हम तो वो लोग हैं जब उठती है तो तलवार नहीं, करूणा की मयूर पिच्छी उठती है। लेकिन याद रखना कभी हमारे धर्मायतन पर आंच आती है तो हमारा समाज किसी के शीश नहीं काटता है अपितु अकलंक- निकलंक बनकर शीश कटाकर धर्म की रक्षा करता है। हमारी अहिंसा को कायरता ना समझा जाये। हमारी अहिंसा वीरो की अहिंसा होती है। उन्होंने कहा कि हमारा आंदोलन तब तक रहेगा जब तक सरकार कोई ना कोई आधिकारिक वक्तव्य जारी ना कर दे। पूरे हिन्दुस्तान की भावनाएं आहत हुई है।
उन्होंने कहा कि इस अवसर पर हम ऐसा कोई कार्य ना करे जिससे जैन समाज पर प्रश्न चिन्ह लग जाये लेकिन ऐसा कार्य भी ना करे कि मंदिर मूर्तियां लुटती रहे और हम घर मे बैठे रहे।  इस धरने का रूप बढ़ेगा और सरकार स्वयं आकर सम्पूर्ण जैन समाज से माफी मांगेगी। यह आवाज इस हाल में ही नहीं अपितु संसद व विधानसभा में  भी गूंजना चाहिए। आप सब अपने-२ राज्य के मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मिलकर अपनी आवाज़ उठाइये, हर राज्य के अल्पसंख्यक आयोग में शिकायत दर्ज करवाइए फिर देखिये कैसे परिणाम नहीं निकलता।
इसमें पधारने वाले कुछ अतिविशेष लोगों में केन्द्रीय राज्य मंत्री श्री प्रदीप जैन ‘आदित्य’, इस्लाम समाज के इमाम उमर अहमद इलियासी, अध्यक्ष-आल इंडिया इमाम ऑर्गेनाइजेशन, ईसाई समाज के फादर डोमनिकजी, हिन्दू समाज के प्रज्ञानंद जी, सिख समाज से परमजीत सिंह जी, मुनि श्री नयपद्मसागर जी महाराज ससंघ एवं श्री लोकेश मुनि जी ससंघ शामिल थे, बहुत सारे गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित हुए।
इमाम उमर अहमद इलियासी ने कहा कि उप्र की राजधानी में दिन दहाड़े ५०० लोग इतना उत्पात मचाते रहे है और पुलिस ने कुछ नहीं किया। सरकार को कठोर कार्यवाही करनी होगी, मैं इस घटना की कड़ी निंदा करता हूँ। श्री प्रदीप आदित्य ने कहा मेरा झांसी मे एक कार्यक्रम था लेकिन जैसे ही इस धरने के बारे मे पता चला तो मैंने सोचा कि धर्म सबसे पहले है इसके बाद कुछ और। मैं अपनी ओर से पूरा दबाव बनाऊंगा ताकि मामले में शीघ्र कार्यवाही हो।
उप्र के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने लखनऊ से एक सांसद को भी भेजा, उन्होंने नयी प्रतिमा स्थापित करवाने और दोषियों को पकड़ने की मुहिम चलाने का आश्वासन दिया. 
मुनि श्री नयपद्मसागर जी महाराज - मुझे समझ में नहीं आता कि शांतिप्रिय जैन समाज को इस देश में  निशाना क्यों बनाया जा रहा है। हमारे मंदिरों  व मूर्तियों को नुकसान क्यों पहुंचाया जा रहा है? आज हमें पंथवाद से ऊपर उठकर धर्म की रक्षा के लिए आगे आना होगा।
कार्यक्रम का सीधा प्रसारण पारस चैनल ने पूरे देश में दिखाया।
धरने में भारतवर्षीय श्री दिगम्बर जैन महासभा, अखिल भारतीय दिग. जैन परिषद, भारतीय जैन मिलन, अखिल भारतीय पुलक जन चेतना मंच, जैन महिला जागृति मंच, दिगम्बर जैन महासमिति, जैन मंच, पारस फांउडेशन, संस्कृति संरक्षण संस्थान, जैन युवा क्लब, पारस मंच, जैन शिक्षा समिति, विश्व ज्ञान भारती, रा। गौ रक्षा संगठन, जैन फाउन्डेशन एवं अन्य संस्थाओं का सहयोग प्राप्त हुआ।

मुनिश्री पुलक सागर का संबोधन
२३ अगस्त २०१२
जंतर-मंतर पर उपस्थित जिन भक्तों को मेरा आशीर्वाद ।
श्रावकों को विश्वमैत्री दिवस के अवसर पर संबोधित करते मुनि श्री पुलक सागर जि महाराज ने कहा “जो धर्म के मार्ग पर चलता है वह तोड़ने में नहीं जोड़ने पर विश्वास रखता है। हमारे अंदर किसी धर्म विशेष से द्वेष की भावना नहीं है, पर हमारे धर्मायतनों पर हमला हमें असहनीय है, हमें तो सरकार की चुप्पी कचोटती है और ऐसा लगता है कि इस घटना के पीछे कोई राजनैतिक साजिश है जो देश की एकता को अखंडता को नष्ट करना चाहते है।
उन्होंने कहा कि मैं उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से पूछना चाहता हूँ कि अगर तुम्हारे पिता का हाथ टूटा होता तो क्या तुम चुप बैठते? नहीं ना!
लखनऊ में केवल पत्थर की मूर्ति नहीं अपितु हमारे पिता, हमारे जनक भगवान महावीर स्वामी जिनकी हम पूजा करते है उनकी मूर्ति को तोड़ने का दुस्साहस जालिमों ने किया है। उन्होंने कहा कि खंडित मूर्ति की जगह सरकार द्वारा दूसरी मूर्ति लगा देने की मांग नहीं करता, जैन समाज स्वयं इतना सक्षम है कि वह कई मूर्तियां स्थापित कर सकता है।
हमारी माँग है कि हमारे तीर्थो की, हमारी मूर्तियों की रक्षा होनी चाहिए। भविष्य मे इस प्रकार की घटनाएं दोबारा ना हो इस बात का आश्वासन हमें चाहिए। सरकार को कठोर कदम उठाकर दोषियों को गिरफ्तार कर दंड देना चाहिए।
उन्होंने कहा कि हम कोई अशांति नहीं फैलाएँगे, हम कोई हिंसा करने वाले नहीं, हम तो वो लोग हैं जब उठती है तो तलवार नहीं, करूणा की मयूर पिच्छी उठती है। लेकिन याद रखना कभी हमारे धर्मायतन पर आंच आती है तो हमारा समाज किसी के शीश नहीं काटता है अपितु अकलंक- निकलंक बनकर शीश कटाकर धर्म की रक्षा करता है। हमारी अहिंसा को कायरता ना समझा जाये। हमारी अहिंसा वीरो की अहिंसा होती है। उन्होंने कहा कि हमारा आंदोलन तब तक रहेगा जब तक सरकार कोई ना कोई आधिकारिक वक्तव्य जारी ना कर दे। पूरे हिन्दुस्तान की भावनाएं आहत हुई है।
उन्होंने कहा कि इस अवसर पर हम ऐसा कोई कार्य ना करे जिससे जैन समाज पर प्रश्न चिन्ह लग जाये लेकिन ऐसा कार्य भी ना करे कि मंदिर मूर्तियां लुटती रहे और हम घर मे बैठे रहे।  इस धरने का रूप बढ़ेगा और सरकार स्वयं आकर सम्पूर्ण जैन समाज से माफी मांगेगी। यह आवाज इस हाल में ही नहीं अपितु संसद व विधानसभा में  भी गूंजना चाहिए। आप सब अपने-२ राज्य के मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मिलकर अपनी आवाज़ उठाइये, हर राज्य के अल्पसंख्यक आयोग में शिकायत दर्ज करवाइए फिर देखिये कैसे परिणाम नहीं निकलता।
हर समस्या का समाधान अहिंसा ही है, इस सिद्धांत को कभी न भूले। अहिंसा में हमारे प्राण हैं, अहिंसा हमारा धर्म है, अहिंसा हमारी पहचान है व अहिंसा ही हमारी संस्कृति है। यह बात बिल्कुल सत्य है उत्तरी भारत व दक्षिणी भारत जैनियों की आस्थाओं के गढ़ रहे हैं। उत्तर भारत हमारे सम्पूर्ण तीर्थंकरो का जन्मदाता है तो दक्षिण भारत विश्व विख्यात अनूठी कृति गोम्मतेश्वर बाहुबली भगवान की शान से गौरवान्वित है।
आज दोनो ही प्रदेषों मे हमारी भावनाओं का कत्लेआम हुआ है। मोक्ष सप्तमी के दिन 25 जुलाई 2012 को जिला गुलबर्ग कर्नाटक के ग्राम अलूर मे समाजकंटको के द्वारा भगवान आदिनाथ  की 1000 वर्ष प्राचीन प्रतिमा को बारूद से उड़ाकर नष्ट कर दिया गया। 17 अगस्त 2012 को उत्तरप्रदेश की राजधानी लखनऊ में दिन दहाडे़ महावीर पार्क में भगवान महावीर की प्रतिमा को पत्थरों के प्रहार से तोड़ा गया। शासन-प्रशासन मूकदर्शक  बना रहा क्यों ? आखिर क्यों ? प्रशासन ने अपराधियों को नहीं रोका? उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया? सुरक्षा कर्मियों को सस्पेंड क्यों नहीं किया? हमारी समाज की पीड़ाओं को क्यों  नजरअंदाज किया? अल्पसंख्यक जैनियों की सुरक्षा की जिम्मेदारी सरकार ने क्यों  नहीं ली? सरकार ने गैर जिम्मेदाराना रवैया क्यों  अपनाया?
इन सभी प्रश्नों के लिए समाज यहां एकत्रित हुआ है। राज्य सरकार यदि मौन है तो केन्द्र सरकार अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन कर राज्य सरकारो को आदेशित करे। हमारी आहत भावनाओं को पुनःस्थापित करे। अंत मे सभी श्रद्धालुओं से मेरा आग्रह होगा कि अपनी बात जैन धर्मानुसार शांतिप्रिय ढ़ंग से रखे। आपसी सौहार्द बनाये रखे जिससे देश की शांति भंग न हो।

गुरुवार, 14 जून 2012

हिंदी के खबरिया चैनलों और अख़बारों में तेज़ी से बढ़ता अंग्रेजी और रोमन लिपि का इस्तेमाल



पिछले १-२ वर्षों में बहुत कुछ बदल गया है, हिंदी के कई खबरिया चैनलों और अख़बारों (परन्तु सभी समाचार चैनल या अखबार नहीं) में अंग्रेजी और रोमन लिपि का इतना अधिक प्रयोग शुरू हो चुका है कि उन्हें हिंदी चैनल/हिंदी अखबार कहने में भी शर्म आती है. मैंने  कई संपादकों को लिखा भी कि अपने हिंदी समाचार चैनल/ अख़बार को अर्द्ध-अंग्रेजी चैनल / अख़बार(सेमी-इंग्लिश) मत बनाइये पर इन चैनलों/ अख़बारों  के कर्ताधर्ताओं को ना तो अपने पाठकों से कोई सरोकार है और ना ही हिंदी भाषा से, इनके लिए हिंदी बस कमाई का एक जरिया है.

मुझे विश्वास है कि आने वाले समय में इनकी अक्ल ठिकाने जरूर आएगी क्योंकि आम दर्शक और पाठक के लिए हिंदी उनकी अपनी भाषा है, माँ भाषा है.

मुट्ठीभर लोग हिंदी को बर्बाद करने में लगे हैं

आज दुनियाभर के लोग हिंदी के प्रति आकर्षित हो रहे हैं, विश्व की कई कम्पनियाँ/विवि/राजनेता हिंदी के प्रति रुचि दिखा रहे हैं पर भारत के मुट्ठीभर लोग हिंदी और भारत की संस्कृति का बलात्कार करने में लगे हैं क्योंकि इनकी सोच कुंद हो चुकी है इसलिए चैनलों/ अख़बारों के कर्ताधर्ता नाम और दौलत कमाते तो हिंदी के दम पर हैं पर गुणगान अंग्रेजी का करते हैं.

हिंदी को बढ़ावा देने या प्रसार करने या  इस्तेमाल को बढ़ावा देने में इन्हें शर्म आती है इनके हिसाब से भारत की हाई सोसाइटी में हिंदी की कोई औकात नहीं है और ये सब हिंदी की कमाई के दम पर उसी हाई सोसाइटी का अभिन्न अंग बन चुके हैं. इसलिए बार-बार नया कुछ करने के चक्कर में हिंदी का बेड़ा गर्क करने में लगे हुए हैं.

शुरू-२ में देवनागरी के अंकों (१२३४५६७८९०) को टीवी और मुद्रण से हकाला गया, दुर्भाग्य से ये अंक आज इतिहास का हिस्सा बन चुके हैं और अब बारी है रोमन लिपि की घुसपैठ की, जो कि धीरे-२ शुरू हो चुकी है ताकि सुनियोजित ढंग से देवनागरी लिपि को भी धीरे-२ खत्म किया जाए. कई अखबार और चैनल आज ना तो हिंदी के अखबार/चैनल बचे हैं और न ही वे पूरी तरह से अंग्रेजी के चैनल बन पाए हैं. इन्हें आप हिंग्लिश या खिचड़ा कह सकते हैं.

ऐसा करने वाले अखबार और चैनल मन-ही-मन फूले नहीं समां रहे हैं, उन्होंने अपने-२ नये आदर्श वाक्य चुन लिए हैं जैसे- नये ज़माने का अखबार, यंग इण्डिया-यंग न्यूज़पेपर, नेक्स्ट-ज़ेन न्यूज़पेपर, इण्डिया का नया टेस्ट आदि-आदि. जैसे हिंदी का प्रयोग पुराने जमाने/ पिछड़ेपन की निशानी हो. यदि ये ऐसा मानते हैं तो अपने हिंदी अखबार/चैनल बंद क्यों नहीं कर देते? सारी हेकड़ी निकल जाएगी क्योंकि हम सभी जानते हैं हिंदी मीडिया समूहों द्वारा शुरू किये अंग्रेजी चैनलों/अख़बारों की कैसी हवा निकली हुई है. (हेडलाइंस टुडे/डीएनए/ डीएनए मनी /एचटी आदि).

क़ानूनी रूप से देखा जाए तो सरकारी नियामकों को इनके पंजीयन/लाइसेंस को रद्द कर देना चाहिए क्योंकि इन्होंने पंजीयन/लाइसेंस हिंदी भाषा के नाम पर ले रखा है. पर इसके लिए जरूरी है कि हम पाठक/दर्शक इनके विरोध में आवाज़ उठाएँ और अपनी शिकायत संबंधित सरकारी संस्था/मंत्रालय के पास जोरदार ढंग से दर्ज करवाएँ. कुछ लोग कह सकते हैं ‘अरे भाई इससे क्या फर्क पड़ता है? नये ज़माने के हिसाब से चलो, भाषा अब कोई मुद्दा नहीं है, जो इंग्लिश के साथ रहेगा वाही टिकेगा आदि.

हिंदी के कारण आज के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की ताकत बढ़ रही है और भारत के  कई बड़े समाचार चैनल /पत्रिका/समाचार-पत्र हिंदीके कारण ही करोड़ों-अरबों के मालिक बने हैं, नाम और ख्याति पाए हैं पर ये सब होने के बावजूद आधुनिकता/नयापन/कठिनता के नाम पर  हिंदी प्रचलित शब्दों और हिंदी लिपि को अखबार/वेबसाइट/पत्रिका/चैनल हकाल रहे हैं धडल्ले से बिना किसी की परवाह किये रोमन लिपि का इस्तेमाल  कर रहे हैं.

हिंदी के शब्दों को कुचला जा रहा है

हिंदी में न्यूज़ और खबर के लिए एक बहुत सुन्दर शब्द है ‘समाचार’ जिसका प्रयोग  दूरदर्शन के अलावा किसी भी निजी चैनल पर वर्जित जान पड़ता है ऐसे ही सैकड़ों हिंदी शब्दों (समय, दर्शक, न्यायालय, उच्च शिक्षा, कारावास, असीमित, सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय, विराम, अधिनियम, ज्वार-भाटा, सड़क, विमानतल, हवाई-जहाज-विमान, मंत्री, विधायक, समिति, आयुक्त,पीठ, खंडपीठ, न्यायाधीश, न्यायमूर्ति, भारतीय, अर्थदंड, विभाग, स्थानीय, हथकरघा, ग्रामीण, परिवहन, महान्यायवादी, अधिवक्ता, डाकघर, पता, सन्देश, अधिसूचना, प्रकरण, लेखा-परीक्षा, लेखक, महानगर, सूचकांक, संवेदी सूचकांक, समाचार कक्ष, खेल-कूद/क्रीड़ा, डिब्बाबंद खाद्यपदार्थ, शीतलपेय, खनिज, परीक्षण, चिकित्सा, विश्वविद्यालय, प्रयोगशाला, प्राथमिक शाला, परीक्षा-परिणाम, कार्यालय, पृष्ठ, मूल्य आदि-आदि ना जाने कितने ऐसे शब्द  हैं जो अब टीवी/अखबार पर सुनाई/दिखाई ही नहीं देते हैं ) को डुबाया/कुचला जा रहा है, नये-नये अंग्रेजी के शब्द थोपे जा रहे हैं.

क्या हम अंगेजी चैनल पर हिंदी शब्दों और हिंदी लिपि के इस्तेमाल के बारे में सपने में भी सोच सकते हैं? कदापि नहीं.  फिर हिंदी समाचार चैनलों पर रोमन लिपि और अनावश्यक अंग्रेजी शब्दों का इस्तेमाल क्यों ? क्या सचमुच हिंदी इतनी कमज़ोर और दरिद्र है? नहीं, बिल्कुल नहीं.

हमारी भाषा विश्व की सर्वश्रेष्ठ और अंग्रेजी के मुकाबले लाख गुना वैज्ञानिक भाषा है. जरूरत है हिंदी वाले इस बारे में सोचें.

आज जो स्थिति है उसे देखकर लगता है कि भारत की हिंदी भी फिजी हिंदी की तरह कुछ वर्षों में मीडिया की बदौलत रोमन में ही लिखी जाएगी!!!

मुझे हिंदी से प्यार है इसलिए बड़ी खीझ उठती है, दुःख होता है. डर भी लगता है कि कहीं हिंदी के अंकों (१,,,,,,,,०) की तरह धीरे-२ हमारी लिपि को भी हकाला जा रहा है. आज हिंदी अंक इतिहास बन चुके हैं, पर भला हो गूगल का जिसने इनको पुनर्जीवित कर दिया है.

हिंदी संक्षेपाक्षर क्या बला है इनको पता ही नहीं

हिंदी संक्षेपाक्षर सदियों से इस्तेमाल होते आ रहे हैं, मराठी में तो आज भी संक्षेपाक्षर का प्रयोग भरपूर किया जाता है और नये-२ संक्षेपाक्षर बनाये जाते हैं पर आज का हिंदी मीडिया इससे परहेज़ कर रहा है, देवनागरी के स्थान पर रोमन लिपि का उपयोग कर रहा है. साथ ही मीडिया हिंदी लिपि एवं हिंदी संक्षेपाक्षरों के प्रयोग को हिंदी के प्रचार में बाधा मानता है, जो पूरी तरह से निराधार और गलत है.

मैं ये मानता हूँ कि बोलचाल की भाषा में हिंदी संक्षेपाक्षरों की सीमा है पर कम से कम लेखन की भाषा में इनके प्रयोग को बढ़ावा देना चाहिए और जब सरल हिंदी संक्षेपाक्षर उपलब्ध हो या बनाया जा सकता हो तो अंग्रेजी संक्षेपाक्षर का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए.

मैं अनुरोध करूँगा कि नए-नए सरल हिंदी संक्षेपाक्षर बनाये जाएँ और उनका भरपूर इस्तेमाल किया जाये, मैं यहाँ कुछ हिंदी संक्षेपाक्षरों की सूची देना चाहता हूँ जो हैं तो पहले से प्रचलन में हैं अथवा इनको कुछ स्थानों पर इस्तेमाल किया जाता है पर उनका प्रचार किया जाना चाहिए, आपको कुछ अटपटे और अजीब भी लग सकते हैं, पर जब हम एक विदेशी भाषा अंग्रेजी के सैकड़ों अटपटे शब्दों/व्याकरण को स्वीकार कर चुके हैं तो अपनी भाषा के थोड़े-बहुत अटपटे संक्षेपाक्षरों को भी पचा सकते हैं बस सोच बदलने की ज़रूरत है.

हिंदी हमारी अपनी भाषा है, इसके विकास की जिम्मेदारी हम सब पर है और मीडिया की ज़िम्मेदारी सबसे ऊपर है.

हमारी भाषा के पैरोकार की उसे दयनीय और हीन बना रहे हैं, वो भी बेतुके बाज़ारवाद के नाम पर. आप लोग क्यों नहीं समझ रहे कि हिंदी का चैनल अथवा अखबार हिंदी में समाचार देखने/सुननेपढ़ने  के लिए होता है ना कि अंग्रेजी के लिए? उसके लिए अंग्रेजी के ढेरों अखबार और चैनल हमारे पास उपलब्ध हैं.

मैं इस लेख के माध्यम से इन सारे हिंदी के खबरिया चैनलों और अखबारों से विनती करता हूँ कि हमारी माँ हिंदी को हीन और दयनीय बनाना बंद कर दीजिये, उसे आगे बढ़ने दीजिये.

हिन्दीभाषी साथियों की ओर से  मेरा विनम्र निवेदन:
१. हिंदी चैनल/अखबार/पत्रिका अथवा आधिकारिक वेबसाइट में अंग्रेजी के अनावश्यक शब्दों का प्रयोग बंद होना चाहिए.
२. जहाँ जरूरी हो अंग्रेजी के शब्दों को सिर्फ देवनागरी में लिखा जाए रोमन में नहीं.
३. हिंदी चैनल/अखबार/पत्रिका अथवा आधिकारिक वेबसाइट में हिंदी संक्षेपाक्षरों के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए.

आम जनता से एक ज्वलंत प्रश्न:

क्या ऐसे समाचार चैनलों/अखबारों का बहिष्कार कर देना चाहिए जो हिन्दी का स्वरूप बिगाड़ने में लगे हैं ?


कुछ हिंदी संक्षेपाक्षरों की सूची
 राजनीतिक दल/गठबंधन/संगठन :

राजग: राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन [एनडीए]
संप्रग: संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन [यूपीए]
तेदेपा: तेलुगु देशम पार्टी [टीडीपी]
अन्ना द्रमुक: अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम[ अन्ना डीएमके]
द्रमुक: द्रविड़ मुनेत्र कषगम [डीएमके]
भाजपा: भारतीय जनता पार्टी [बीजेपी]
रालोद : राष्ट्रीय लोक दल [आरएलडी]
बसपा: बहुजन समाज पार्टी [बीएसपी]
मनसे: महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना [एमएनएस]
माकपा: मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी [सीपीएम]
भाकपा: भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी [सीपीआई]
राजद: राष्ट्रीय जनता दल [आरजेडी]
बीजद: बीजू जनता दल [बीजेडी]
तेरास: तेलंगाना राष्ट्र समिति [टीआरएस]
नेका: नेशनल कॉन्फ्रेन्स
राकांपा : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी [एनसीपी]
अस: अहिंसा संघ
असे: अहिंसा सेना
गोजमुमो:गोरखा जन मुक्ति मोर्चा
अभागोली:अखिल भारतीय गोरखा लीग
मगोपा:महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी)
पामक : पाटाली मक्कल कच्ची (पीएमके)  
गोलिआ:गोरखा लिबरेशन आर्गेनाइजेशन (जीएलओ)

संस्थाएँ
अंक्रिप = अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट परिषद [आईसीसी]
संसंस : संयुक्त संसदीय समिति [जेपीसी]
आस: आयोजन समिति [ओसी]
प्रेट्र:प्रेस ट्रस्ट [पीटीआई]
नेबुट्र:नेशनल बुक ट्रस्ट
अमुको : अंतर्राष्ट्रीय  मुद्रा कोष [आई एम एफ ]
भाक्रिनिम : भारतीय क्रिकेट नियंत्रण मंडल/ बोर्ड [बीसीसीआई]
केमाशिम : केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल/बोर्ड [सीबीएसई]
व्यापम: व्यावसायिक परीक्षा मंडल
माशिम: माध्यमिक शिक्षा मण्डल
राराविप्रा: राष्ट्रीय राजमार्ग विकास प्राधिकरण [एनएचएआई]
केअब्यू : केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो [सीबीआई]
मनपा: महानगर पालिका
दिननि : दिल्ली नगर निगम [एमसीडी]
बृमनपा: बृहन मुंबई महानगर पालिका [बीएमसी]
भाकृअप : भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद
भाखेम : भारतीय खेल महासंघ
भाओस : भारतीय ओलम्पिक संघ [आईओए]
मुमक्षेविप्रा: मुंबई महानगर क्षेत्रीय विकास प्राधिकरण [एमएमआरडीए ]
भापुस : भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण [एएसआई]
क्षेपका : क्षेत्रीय परिवहन कार्यालय [आरटीओ]
क्षेपा: क्षेत्रीय परिवहन अधिकारी [आरटीओ]
कर: कम्पनी रजिस्ट्रार [आरओसी]
जनवि: जवाहर नवोदय विद्यालय
नविस : नवोदय विद्यालय समिति
सरां: संयुक्त राष्ट्र
राताविनि:राष्ट्रीय ताप विद्युत निगम [एनटीपीसी]
रासंनि:राष्ट्रीय संस्कृति निधि [एनसीएफ ]
सीसुब: सीमा सुरक्षा बल [बीएसएफ]
रारेपुब: राजकीय रेलवे पुलिस बल
इविप्रा : इन्दौर विकास प्राधिकरण [आईडीए]
देविप्रा: देवास विकास प्राधिकरण
दिविप्रा : दिल्ली विकास प्राधिकरण [डीडीए]
त्वकाब : त्वरित कार्य बल
राराक्षे : राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र [एनसीआर]
भाजीबीनि : भारतीय जीवन बीमा निगम [एलआईसी]
भारिबैं: भारतीय रिज़र्व बैंक [आरबीआई]
भास्टेबैं: भारतीय स्टेट बैंक [एसबीआई]
औसुब : औद्योगिक सुरक्षा बल
अभाआस:अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान [एम्स]
नाविमनि: नागर विमानन महानिदेशालय [डीजीसीए]  
अंओस: अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी)
रासूविके: राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र [एनआईसी]
विजांद: विशेष जांच दल [एसआईटी]
भाप्रविबो:भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड [सेबी]
केरिपुब: केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल [सीआरपीएफ]
भाअअस: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन [इसरो]
भाबाकप: भारतीय बाल कल्याण परिषद
केप्रकबो: केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड [सीबीडीटी]
केसआ:केंद्रीय सतर्कता आयुक्त [सीवीसी]
भाप्रस: भारतीय प्रबंध संस्थान [आई आई एम]
भाप्रौस : भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान [आई आई टी ]
रारेपु:राजकीय रेलवे पुलिस (जीआरपी)

अन्य :
मंस : मंत्री समूह
जासके : जागरण सम्वाद केन्द्र
जाससे:जागरण समाचार सेवा
अनाप्र: अनापत्ति प्रमाणपत्र
इआप: इलेक्ट्रोनिक आरक्षण पर्ची
राग्रास्वामि : राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन [एनआरएचएम]
कृपृउ : कृपया पृष्ठ उलटिए
रासामि : राष्ट्रीय साक्षरता मिशन
रनाटै मार्ग  : रवीन्द्रनाथ टैगोर मार्ग
जलाने मार्ग: जवाहर लाल नेहरु मार्ग
अपिव: अन्य पिछड़ा वर्ग [ओबीसी]
अजा: अनुसूचित जाति [एससी]
अजजा: अनुसूचित जन जाति [एसटी]
टेटे : टेबल टेनिस
मिआसा- मिथाइल आइसो साइनाइट
इवोम- इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन [ईवीएम]
ऑटिवेम: ऑटोमैटिक टिकट वेण्डिंग मशीन
स्वगम: स्वचालित गणना मशीन  [एटीएम]
ऑटैम : ऑटोमेटिक टैलर मशीन [एटीएम]
यूका:यूनियन कार्बाइड
मुम: मुख्यमंत्री
प्रम : प्रधान मंत्री
विम: वित्तमंत्री/ विदेश मंत्री/मंत्रालय
रम : रक्षा मंत्री/ मंत्रालय
गृम : गृह मंत्री/ मंत्रालय
प्रमका: प्रधान मंत्री कार्यालय [पीएमओ]
शिगुप्रक:शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी [एसजीपीसी]  
रामखे:राष्ट्रमंडल खेल [सीडब्ल्यूजी]
पुमनि:पुलिस महानिदेशक [डीजीपी] 
जहिया:जनहित याचिका [पीआइएल]
गैनिस: गैर-निष्पादक सम्पतियाँ (एनपीए)
सभागप:समर्पित भाड़ा गलियारा परियोजना
सानियो: सामूहिक निवेश योजना [सीआईएस)  
अमलेप:अंकेक्षक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी)
सराअ :संयुक्त राज्य अमरीका  [यूएसए]
आक: आयकर
सेक : सेवाकर
वसेक : वस्तु एवं सेवा कर [जीएसटी]
केविक: केन्द्रीय विक्रय कर [सीएसटी]
मूवक: मूल्य वर्द्धित कर [वैट]
सघउ : सकल घरेलु उत्पाद [जीडीपी]
नआअ: नगद आरक्षी अनुपात [सीआरआर]
प्रमग्रासयो: प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना
विस: वित्त समिति, विधानसभा, वित्त सचिव
प्रस: प्रचार समिति
व्यस :व्यवस्था समिति
न्याम: न्यासी मण्डल
ननि : नगर निगम
नपा: नगर पालिका
नप: नगर पंचायत
मनपा : महा नगर पालिका
भाप्रा: भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग
भापाके : भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र
केंस: केंद्र सरकार
भास: भारत सरकार
रास: राज्य सरकार/राज्यसभा
मिटप्रव: मिट्रिक टन प्रति वर्ष (एमटीपीए) 

सानिभा: सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) 

निरह: निर्माण-रखरखाव-हस्तान्तरण (ओएमटी)

निपह: निर्माण-परिचालन-हस्तान्तरण  (बीओटी)

तीगग: तीव्र गति गलियारा  (हाई स्पीड कोरिडोर)

भाविकांस: भारतीय विज्ञान कांग्रेस संघ



फ़िल्में :
ज़िनामिदो : जिंदगी ना मिलेगी दोबारा [ज़ेएनएमडी]
दिदुलेजा: दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे [डीडीएलजे]
पासिंतो :पान सिंह तोमर

धारावाहिक:
कुलोक : कुछ तो लोग कहेंगे, जीइकाना: जीना इसी का नाम है,  दीबाह: दीया और बाती हम