गुरुवार, 10 जनवरी 2013

जैन समाज को गिरनार पर्वत पर सुरक्षा न देने की दोषी गुजरात सरकार


गुजरात उच्च न्यायालय के आदेश  होने के बाजूद जैन समाज को गिरनार पर्वत पर सुरक्षा न देने की दोषी गुजरात सरकार
इस मुकदमे में लापरवाही बरतने हेतु भारतवर्षीय दिग. जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी के पदाधिकारिओं से स्पष्टीकरण का अनुरोध 
बंधुओ! गिरनार पर्वत, शिखर जी के बाद एक महत्पूर्ण सिद्ध क्षेत्र है! गिरनार पर्वत पर जैन समाज के स्वतंत्र रूप से पूजा करने और जैन समाज की पर्वत पर सुरक्षा हेतु गुजरात उच्च न्यायालय में बांदीलालजी दिगम्बर जैन कारखाना, गिरनार द्वारा मुकदमा दायर किया गया था! इस मुकदमे को वर्ष 2005 में तीर्थ क्षेत्र कमेटी  ने अपने हाथ में ले लिया था! गुजरात उच्च न्यायालय ने इस मुकदमे में 17 फरवरी  2005 को निम्न आदेश दिए थे:-

1. जिलाधिकारी 17 फरवरी  2005 से चार हफ्ते के अन्दर गिरनार पर्वत की चौथी और पांचवी टोंक के बीच में जाँच चौकी बनायेंगे जिससे पांचवी 
टोंक पर आने - जाने की समुचित व्यवस्था हो सकें और इस जाँच चौकी पर उचित पुलिस फोर्स लगायी जाएँ! 
2. यदि किसी भी व्यक्ति द्वारा चाहे वो नेमिनाथ का या दत्तात्रेय का मानने वाला हो या अन्य हो, के द्वारा किसी भी प्रकार की शिकायत दर्ज करायी जाती है तो वह शिकायत 12 घंटें के अन्दर जिला पुलिस सुपरिन्टेन्डेन्ट को भेजी जाये और शिकायत पर कानून के अनुसार कार्यवाही हों!
3. न्यायालय द्वारा तीन सदस्य कमेटी का गठन किया गया जिसमे गुजरात सरकार के डिप्टी सेक्रेटरी, पुरातत्व विभाग और जिलाधिकारी को लिया गया, इस कमेटी क17 अगस्त 2005 तक गिरनार पर्वत की पांचवी टोंक पर जैन धर्मं और दत्तात्रय को मानने वालें दोनों उचित प्रकार से अपने - अपने स्थान पर या पसंद के स्थान पर पूजा कर सकें, इस विषय में अपनी रिपोर्ट देनी है!
परन्तु जूनागढ़ के जिलाधिकारी द्वारा गिरनार पर्वत पर 17 मार्च 2005 से आज तक भी उचित पुलिस फोर्स की व्यवस्था नहीं की गयी और न ही उपरोक्त कमेटी  द्वारा 17 अगस्त 2005 से आज तक कोई रिपोर्ट न्यायालय को दी गयी, जिससे न्यायालय अपना कोई निर्णय लेती! बंधुओं, निम्न विषयों को ध्यान से पढ़ें :-
1. न्यायालय द्वारा जब 17 फरवरी  2005 को जिलाधिकारी को एक महीने के अन्दर टोंक पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम करने को कहा गया था तो एक  महीने बाद जिलाधिकारी द्वारा न्यायालय के आदेश  का पालन न करने पर तीर्थ क्षेत्र कमेटी  द्वारा न्यायालय को सूचित क्यों नहीं किया गया? साढ़े सात साल बाद 28 दिसम्बर 2012 को यह कार्यबाही क्यों की गयी?
2. न्यायालय ने जब 17 अगस्त 2005 तक का समय न्यायालय द्वारा नियुक्त कमेटी  को दिया था तो इस कमेटी द्वारा समय पर रिपोर्ट न दिए जाने पर तीर्थ क्षेत्र कमेटी  द्वारा न्यायालय अवमानना का मुकदमा क्यों नहीं दायर किया गया! साढ़े सात साल बाद 28 दिसम्बर 2012 को यह कार्यबाही क्यों की गयी?
 3. यह मुकदमा यह मानकर किया गया की गिरनार पर्वत की टोंक / पर्वत पर जैन समाज का कोई मालिकाना अधिकार नहीं है, जैन समाज को पूजा के अधिकार सुरक्षा के साथ चाहियें, जबकि जानकारी के अनुसार गिरनार पर्वत जैन समाज का है! मुकदमे के अनुसार गिरनार की पांचवी टोंक पर स्थापित की गयी दत्तात्रेय की मूर्ति और अवैध निर्माण को हटाया जाये क्युकी यह टोंक पुरातत्व विभाग के अंतर्गत आती है,  कि यह जैन समाज का सिद्ध क्षेत्र है! 
4. तीर्थ क्षेत्र
कमेटी  ने अपने मुकदमे में लिखा कि यदि न्यायालय दत्तात्रेय की मूर्ति और अवैध निर्माण को हटाना स्वीकार नहीं करती है तो न्यायालय जैन समाज के टोंक पर सुरक्षित तरीके से पूजा करने की व्यवस्था कराये! जबकि तीर्थ क्षेत्र कमेटी और महासभा के अध्यक्ष द्वारा जैन समाज की सभाओं में यह बताया जाता है कि न्यायालय ने मूर्ति हटाने के आदेश दे दिए है,सरकार पालन नहीं कर रही है! 
5. न्यायालय ने पॉइंट न. 8 पर लिखा कि यह जगह गुजरात पुरातत्व अधिसूचना के अंतर्गत 'गुरु दत्तात्रेय टुंक' नाम से अंकित है और यदि जैन याचिकाकर्ता मूर्ति और चरण चिन्हों को भगवान आदिनाथ के होने का दावा करता है तो इस विषय में उचित जानकारी हेतु जाच-पड़ताल करायी जाएँ, इसका अर्थ तीर्थ क्षेत्र कमेटी  ने ऐसा कोई दावा पेश ही नहीं किया!
6.
न्यायालय ने पॉइंट न. 10 पर लिखा कि जैन याचिकाकर्ता ने यह याचिका इसलिए लगाई है कि सरकार द्वारा संरक्षित इस पुरातत्व महत्व के स्मारक की देख-रेख ठीक प्रकार से नहीं की जा रही है, इसीलिए भगवान दत्तात्रेय और निर्माण को हटाने सम्बन्धी निर्देश देने उचित नहीं होंगे! 
आखिर क्यों?:- 
1.      तीर्थ-क्षेत्र कमेटी  ने जैन धर्मं के अति-प्राचीन सिद्ध क्षेत्र गिरनार पर्वत होने से सम्बंधित सबूतों आदि का समावेश मुकदमे में ठीक प्रकार से क्यों नहीं किया?, क्युकी जहा तक जानकारी है दत्तात्रेय से सम्बंधित कोई भी प्राचीन शिलालेख या मूर्ति गिरनार पर्वत से प्राप्त नहीं हुई है, जबकि गिरनार पर्वत के जैन धर्मं से सम्बंधित कई प्राचीन शिलालेख सरकारी रूप से उपलब्ध है! 
2.      सुरक्षा सम्बन्धी न्यायालय के आदेशों का जिलाधिकारी द्वारा सख्ती से पालन न करने पर अवमानना का मुकदमा क्यों 2005 में दायर नहीं किया गया?
3.      न्यायालय ने पॉइंट न. 6 पर लिखा कि पुरातत्व विभाग ने माना कि टोंक पर दत्तात्रेय की मूर्ति पहले थी लेकिन अब केवल मूर्ति को बदला गया है और केवल कुछ परिवर्तनों के साथ निर्माण की अनुमति दी गयी! 
(कभी ऐसा होता है क्याकि पुरातत्व महत्व के स्मारक में पूजा करने हेतु मूर्ति को बदला जाता है, नए निर्माण कि स्वीकृति दी जाती है!
4.      यदि गुजरात सरकार के सम्बंधित विभाग और हमारी तीर्थ-क्षेत्र कमेटी  समय रहते बिना लापरवाही के कदम उठा लेती तो शायद जो आज गिरनार पर्वत पर जैन संतो और जैन समाज के साथ दुर्व्यवहार और जानलेवा हमले न होते.. समय रहते सुप्रीम न्यायालय में अपील क्यों नहीं दायर की गयी?
5.      हम अपनी तीर्थ क्षेत्र कमेटी  से विनती करते है कि तीर्थ-क्षेत्र कमेटी  इस विषय में अपना स्पष्टीकरण दे? 
विशेष:-
जुलाई 2007 में अखिल भारतीय दिग. जैन परिषद् द्वारा अपनी 'वीर' पत्रिका के पेज न. 4 पर गिरनार जी पर विधव्न्शक प्रवृति से निबटने और चल रही क़ानूनी लड़ाई हेतु ''श्री गिरनारजी तीर्थ राष्ट्र स्तरीय एक्शन कमेटी '' का गठन किया था और इस विषय में मुक्त हस्त से दान देने की अपील की थी! कृपया परिषद् भी जानकारी दे कि इस कमेटी  में कौन लोग है और अब तक क्या कार्यवाही की गयी?
6.      यदि आपको ऊपर लिखे किसी भी शब्द से आपत्ति है तो मै आपसे क्षमा मांगता हू.. परन्तु कुछ लोगो की लापरवाही से सारे विश्व के जैन समाज की आस्था के केंद्र गिरनार पर्वत को लुटते नहीं देखा जा सकता! प्रयास करना सबका काम है, सफलता / असफलता बाद का विषय है! तीर्थों / संतो / समाज का संरक्षण सर्वप्रथम आवश्यक है!
गिरनार हमारा था, है और हमेशा रहेगा>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>>जय जिनेन्द्र 
संजय जैन मो. 09312278313 e-mail : 
vishwajains@yahoo.com

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

जैन मुनि पर हमला



गुजरात : दिगंबर जैन मुनि पर प्राणघातक हमला, दो श्वेताम्बर मुनियों को ट्रक ने कुचला
इन दुर्घटनाओं के विरोध में जैन समाज ने की बोरीवली में आपात बैठक

मुंबई
२ जनवरी २०१३। जैन धर्मावलंबियों के लिए नववर्ष दुखद घटनाएँ लेकर आया है. एक दुर्घटना गिरनार, जूनागढ़ की है तो दूसरी भरूच की है. इन दुर्घटनाओं के विरोध में जैन समाज ने की बोरीवली में आपात बैठक का आयोजन किया, जिसमें बृहत् मुंबई के सभी उपनगरों एवं दक्षिण मुंबई से काफी संख्या में समाज के गणमान्य सदस्यों एवं श्रावकों ने भाग लिया. 

जैन मुनि पर हुए हमले के विरोध में सम्पूर्ण जैन समाज आगामी 7 जनवरी  २०१३ को प्रातः ९ बजे से हीरा बाज़ार से आजाद मैदान तक मुंह पर काली पट्टियां बांधकर विरोध रैली निकालेगा और प्रधानमंत्री/राष्ट्रपति एवं गुजरात के मुख्यमंत्री के नाम ज्ञापन महाराष्ट्र के राज्यपाल को सौंपा जाएगा । 

ज्ञात हो कि जनवरी को सायं ६ बजे मुनिश्री प्रबल सागर जी महाराज सिद्धक्षेत्र गिरनार (गुजरात) में पांचवी टोंक (कमल कुण्ड) से वापसी कर रहे थेतब कुछ असामाजिक तत्वों एवं स्थानीय पंडों द्वारा मुनिश्री पर चाकुओं से प्राणघातक हमला किया गयाइसमें मुनिश्री के पेट में ५ घहरे घाव हुए और काफी रक्त बहता रहा जिससे मुनि तुरंत बेहोश हो गए. घायल अवस्था और कडाके की ठिठुरती ठण्ड में भी दिगंबर मुनि घंटों पहाड़ पर ही पड़े रहे, रात को करीब १ बजे उन्हें पालकी वालों ने पहाड़ से नीचे उतारा और फिर रोगिवाहिका से जूनागढ़ के एक अस्पताल में भर्ती करवाया गया, जहाँ उनका ऑपरेशन हुआ पर अभी भी उनकी स्थिति गंभीर बनी हुई है.

ध्यान दें कि दिगंबर मुनि दीक्षा लेने के बाद कभी भी किसी प्रकार के वाहन का इस्तेमाल नहीं करते और ना ही रात्रिकाल में एक स्थान से दूसरे स्थान पर गमन करते हैं. दिन में एक बार ही आहार-जल ग्रहण करते हैं. सभी जीवों के प्रति करुणा से ओतप्रोत होते हैं. हमेशा पैदल ही विहार करते हैं और सर्दी-गर्मी अथवा बरसात में भी किसी प्रकार के आवरण का इस्तेमाल नहीं करते. मयूरपंख से बनी पिच्छिका एवं कमंडल के अलावा कोई भी वस्तु अपने साथ नहीं रखते और रोगी होने पर भी चिकित्सालय में जाकर उपचार नहीं लेते हैं. यह सब उनकी दीक्षा के प्राथमिक नियम होते हैं. इस घटनाक्रम से मुनिश्री की दीक्षा का विच्छेद हो गया है क्योंकि उन्हें बेहोश अवस्था में ही रात के समय अस्पताल में भर्ती कर दिया गया. जैनधर्म के इतिहास में यह दुर्घटना काले अध्याय के सामान है जिसे कभी समाज भुला नहीं सकता.

गिरनार तीर्थ पर जैनों और समाजकंटकों के बीच पिछले १५ वर्षों से विवाद चल रहा है जबकि मूल रूप से यह जैन तीर्थ जैनधर्म के २२ तीर्थंकर नेमिनाथ भगवान् की निर्वाण स्थली है. जिसपर समाजकंटकों ने जबरन कब्ज़ा कर रखा है जो हमेशा जैन तीर्थ यात्रियों को धमकाते रहते हैं, अभद्र व्यवहार करते हैं. गुजरात उच्च न्यायालय ने २१  दिसम्बर २००४ में गिरनार जी की पांचवी टोंक पर से अनधिकृत कब्जा और गैर-क़ानूनी रूप से स्थापित दत्तात्रय की मूर्ति को २८ दिसम्बर २००४ तक हटाने के आदेश दिए थे और यह भी आदेश दिए गए थे कि २८ दिसम्बर २००४ तक न हटाये जाने पर सम्बंधित विभागों को जबरन हटाने हेतु आदेश दिए जायेंगे! 

लेकिन मार्च 
२००५ में हाई कोर्ट ने अपने २१  दिसम्बर २००४ के आदेश को बदलते हुए नए आदेश में भविष्य में पांचवी टोंक पर किसी भी नए निर्माण पर रोक लगा दी थी और एक कमेटी का गठन किया जिसे इस विषय में सारी जानकारी इकट्ठी करके अगले ६ महीनों में (मतलब नवम्बर२००५ तक)..गुजरात उच्च न्यायालय को सौंपना था.
 
साथ ही इसी दिन 
भरूच (गुजरात) के पास  पास राष्ट्रीय राजमार्ग ८  पर मंगलवार  को दो श्वेताम्बर जैन साधुओ  श्री ज्ञानेश्वर विजय महाराज और श्री हस्तिगिरी विजय  महाराज  को विहार के समय ट्रक से कुचला गया और वे घटनास्थल पर ही देवगति को प्राप्त हुए। ट्रक चालक दुर्घटना के बाद मौके से भाग निकले. गुजरात में पिछले २० दिनों में ऐसी १० घटनाएं हो चुकी हैं. जिनकी जाँच सीबीआई को सौंपी जानी चाहिए. भारत सरकार एवं गुजरात सरकार से ट्रक चालक को गिरफ्तार कर उस पर कानूनी कार्यवाही करने की मांग की।

मुनि पर इस हुए हमले की समस्त ने जैन समाज घोर निन्दा कर हमलावरों को गिरफ्तार कर उस पर कठोरतम कानूनी कार्यवाही करने एवं गिरनार तीर्थ पर पुलिस व्यवस्था कड़ी करने की मांग की।