मंगलवार, 20 सितंबर 2011

सराक कौन हैं?

सराक कौन हैं?

सराक एक जैनधर्मावलंवी समुदाय है। इस समुदाय के लोग बिहार, झारखण्ड, बंगाल एवं उड़ीसा के लगभग १५ जिलों में निवास करते हैं। इनकी संख्या लगभग १५ लाख है।सराक संस्कृत के शब्द श्रावक का अपभ्रंश रूप है। इसका अर्थ है श्रावक अर्थात जैनधर्म में आस्था रखने वाले श्रद्धालु।

ये जैनधर्म के २३वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ के तीर्थकाल के प्राचीन श्रावकों की वंश परंपरा के उत्तराधिकारी हैं। सराक जाति पिछले दो हज़ार वर्षों से देश में व्यवस्थित शासन के अभाव, अराजकता, नैतिक अस्थिरता आदि परिस्थितियों में धर्मद्रोहियों से बचने के लिए जंगलों में भटकती रही है। समय की मार, क्रूर शासको के अत्याचारों के साथ-साथ अनेक झंझावातों एवं विपरीत परिस्थितियों को झेलते हुए भी उन्होंने अपने मूल संस्कारों जैसे-नाम/ गोत्र/ भक्ति/ उपासना/ पुजपध्दति/ जलगालन/ रात्रिभोजन त्याग/ अहिंसा की भावना को नहीं छोड़ा। परन्तु समाज के उपेक्षा-भाव तथा निर्ग्रन्थ साधुयों का साथ न मिलने के कारण वे जैन समाज की मूलधारा से कटकर आदिवासी और जनजाति की श्रेणी में आ गये।
·      भगवान पार्श्वनाथ एवं भगवान महावीर को अपना कुल देवता मानते हैं| इनके गोत्र भी जैन धर्म के चौबीस तीर्थकरों के नाम पर हैं, जैसे आदिदेव, शांतिदेव, धर्मदेव, अनंतदेव आदि | सराकों को ‘णमोकार मंत्र’ में अटूट आस्था है|
·      सराकों के विषय में जैन ही नहीं अपितु जैनेत्तर विद्वानों,पुरातत्ववेत्ताओं, भ्रमणकारियों, जनगणना रिपोर्टों में भी अनेक प्रामाणिक एवं  महत्वपूर्ण तथ्य उजागर हुए हैं, जो पुष्टि करते हैं कि सराक जैन श्रावक ही  हैं और काफी लंबे समय से वन्य क्षेत्र में जीवनयापन कर रहे हैं|
·      मि० आई० टी० डाल्टन एवं एच० एस० रिसले (बंगाल और पुरी डिस्ट्रिक्ट गजेटियर १९०८-१९१०) के अनुसार –
“सराकगण झारखण्ड में बसने वाले पहले आर्य हैं, ये अहिंसा धर्म में आस्था रखते हैं|”

मि० गेटसेसंस रिपोर्ट-
“बंगाल देश में एक खास तरह के लोग रहते हैं, जिनको श्रावक कहते हैं| ये मूलरूप से जैन हैं|”

Mr. L.S.S.O. Mally -
“The name Saravak, ‘Sarak’ or ‘Sarakis’ clearly a corruption of Shravak. The Sanskrit word for a hearer which was used by the Jains for lay brothers that is a Jain engaged in secular pursuits as distinguished from ‘Yati’ that is priest as ascetics.”



जैन संस्कृति के अद्भुत उदाहरण करते अपना पुनर्जागरण
·      सदियों से नितांत सुविधाविहीन स्थितियों में  दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों, जंगलों में रहते हुए एवं अनेक कठिनाइयों का सामना करते हुए भी ये ‘सराक’ पूरी सतर्कता के साथ अपने संस्कारों को निभाते चले आ रहे हैं |
·      अपने पूर्वजों से प्राप्त संस्कृति और संस्कारों की अनमोल धरोहर को न सिर्फ उन्होंने सुरक्षित ढंग से संरक्षित किया है, बल्कि बड़ी तत्परता के साथ उनका पालन किया है| ऐसी कसौटी पर खरा उतरकर उन्होंने अपने जैनत्व को विश्वभर में स्थापित किया है|
·      यदि वर्तमान में जैन समाज एक विशालतम वटवृक्ष है, तो सराक उस वटवृक्ष की एक मजबूत शाखा है, जिन पर यह वृक्ष पल्लवित होकर विस्तृत हुआ है| यदि वर्तमान जैन-संघ ‘जिनेश्वर’ की प्रतिमा है, तो सराक उस प्रतिमा के अवशेष हैं| यदि ‘जैन’ रूपी  पर्वत की खुदाई की जाये, तो ‘सराक’ उस खुदाई की उपलब्ध होंगे|
·      सत्य तो यह है कि हम ‘जैन’ लिखने वाले तो आधुनिकता में बह गये हैं, परन्तु सराक आज भी श्रावक के मूलगुणों का पालन करते हैं| भले ही सैद्धांतिक रूप से मूलगुणों के नाम याद न हों, पर उनके आचरण में वे देखे जा सकते हैं|
·      प्रकृति से शांत, सौम्य, सरल सराक गर्व से कहते हैं कि आज तक इनकी किसी भी पीढ़ी ने ऐसा कोई अपराध नहीं किया, जिसके लिए उन्हें जेल जाना पड़ा हो या सजा मिली हो|
·      ये सराक जैन आज भी जैन संस्कृति की अमूल्य संपदा को व्यवहार में पालन कर सच्चे “जैनी” आगमोक्त ‘श्रावक’ होने का प्रमाण दे रहे हैं|
शैली में शाकाहार, अनुपमेय है अतिथि सत्कार
·      सराकों की अनेक ऐसी विशेषताएं हैं, जिन्हें देखकर आशचर्य होता है लेकिन वे हैं सत्य| ये सराक मांसाहारियों के बीच रहते हुए भी पूर्ण शाकाहारी हें| यह इनके जीवन की सबसे बड़ी विशेषता है| एक अंग्रेज ने अपनी लेखनी द्वारा बड़ा आश्चर्य व्यक्त किया है ‘कि मुझे आश्चर्य होता है कि मांसाहारियों के झुण्ड में रहकर भी ये बंधु शाकाहारी कैसे हैं?”
·      शैली में तो अहिंसा के दर्शन होते ही हैं, साथ ही बोलचाल की भाषा में भी हिंसात्मक शब्द जैसे काटना, मारना, तोड़ना इत्यादि हिन्साजनक शब्द इस समाज में नहीं बोले जाते| काटो, टुकड़े करो आदि शब्द बोलने से सब्जी को भी अशुध्द मानते हैं|
·      साथ ही रात्रि भोजन नहीं करते| उदंबर फलों में सूक्ष्म जीव होने से उन्हें अभक्ष्य मानते हैं| प्याज, लहसुन के सेवन का भी पूर्ण निषेध है|
·      ये सराक भाई अतिथि को देव तुल्य मानते हैं| स्वभाव से सहज एवं सरल हैं| अतिथि-सत्कार के प्रति उत्साहित रहते हैं| विवाह अपने ही समाज में करते हैं| परंपरा से विधवा-विवाह एवं विजातीय विवाह का निषेध करते हैं|

मूल्यवान धरोहर के धारक, जैन-धर्म के सच्चे प्रचारक

सराक बाहुल्य क्षेत्र बिहार, झारखण्ड, बंगाल, उड़ीसा में पुरातत्व की द्रष्टि से जैन संस्कृति का पुरावैभव यत्र-तत्र देखा जा सकता है| इधर-उधर बिखरे पड़े बहुमूल्य कलापूर्ण जैन मंदिर, मूर्तियाँ और विपुल जैन कीर्तियाँ सराक बंधुओं की जैन समाज के प्रति आस्था और समर्पण की जीवंत गाथा गाती नजर आती हैं| इनका विगत गौरव, पूर्वजों का धर्मं व संस्कार इनकी विरासत हैं| कोलकाता, पटना और भुवनेश्वर के संग्रहालयों में सराक क्षेत्र से प्राप्त जैन प्रतिमाएं रखी हुई हैं| ये गुप्त युग की कला का प्रतिनिधित्व करती हैं| यहाँ पाषाण और धातु की अन्य कई जैन मूर्तियाँ हैं, जिनका काल ईसा कि ९वीं शताब्दी मन जाता है, साथ ही अनेको स्थानों पर खण्डित-अखण्डित जैन प्रतिमायें, ध्वस्त मंदिर, जैन अवशेष बिखरे पड़े हैं, जिनमे प्रमुख हैं- बिहार में गया जिले के अंतर्गत पचार पहाड़ी, बह्यजूनी पहाड़ी|
·      देवलतांड प्राचीन एवं भव्य दिगंबर जैन मंदिर लगभग १००० वर्ष प्राचीन है| इसका भव्य शिखर अत्यंत मनोहारी है तथा यहाँ भगवान पार्श्वनाथ की खड्गासन प्रतिमा विराजमान है|
·      अनाईजामाबाद जो पुरुलिया से १० कि० मी० की दूरी पर कंसा नदी के किनारे स्थित है, यहाँ से खुदाई में ११ जैन मंदिर तथा अनेक जैन मूर्तियाँ प्राप्त हुई है|
·      बंगाल में मानभूमि के अतिरिक्त बलरामपुर, बोरम, दारिका, दर्रा,  पवनपुर, पंचेत, तेलकुपी पखाग्रा बड़ाबाजार में अनेक प्राचीन अवशेष हैं| जिला हुगली में दतिपुर, रबनुला में भी जैन अवशेष हैं| सिंहभूमि के अतिरिक्त बेनुसागर, कोलन, रुँआन, हांसी, हुरुणडीह, देवलटान्ड़, नवाडीह, तमाड़ में प्राचीन जैन स्मारक हैं| उपरोक्त एतिहासिक स्थल इस बात का स्पष्ट प्रमाण देते रहे हैं कि सराक बाहुल्य क्षेत्र जैनियों का क्षेत्र रहा है, अत; सराक जैन ही हैं|

“सराकों” के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के अभिमत-

‘सराक’ शब्द की व्युत्पति बड़ी रोचक है| सराक संस्कृत के ‘श्रावक’ शब्द से व्युत्पन्न माना जाता है| इसे लेकर अब तक जो अनुमान लगाये जा रहे हैं, उनका संक्षेप इस प्रकार है:

यह ‘श्रावक’ शब्द से बना है| ‘श्रावक’ का स्वर-शक्ति के नियम से ‘सरावक’ हुआ और फिर ‘सरावक’ में से ‘व’ के लोप द्वारा ‘सराक’ शब्द बना|

“in the district of Manbhoom we find two district-type of architectural remains. Those that appear most disunct and are said by the people to be so are ascribed, traditionally and no doubt correctly to arace called variously “Searp”. “Serab”, “Seark”, “Srawaka”, who were probably the earliest Aryan colonist in this part of India.”

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